उत्तराखंड

NOTA ने उत्तराखंड में राजनीतिक दलों का बिगाड़ा गणित, यहां खूब दबाया गया ये बटन; प्रत्याशी विमर्श करने को मजबूर

नोटा यानी ‘नन आफ द एबव’ (नोटा) ने उत्तराखंड के राजनीतिक दलों की गणना में चुनौती दी है। नोटा के बढ़ते प्रयोग से दिखता है कि मतदाताओं की जागरूकता बढ़ी है और उन्हें अपने मताधिकार का उपयोग करने की जरूरत की अहमियत समझी जा रही है।

उत्तराखंड में 2014 के लोकसभा चुनाव में 48,043 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना, जो 2019 में 50,946 मतदाताओं तक बढ़ गया। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि नोटा का उपयोग लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

नोटा एक ऐसा विकल्प है जिसे मतदाता अगर किसी प्रत्याशी को समर्थन नहीं देना चाहता है, तो वह नोटा का चयन कर सकता है। इससे उसका मत वहाँ शामिल हो जाता है, लेकिन किसी भी प्रत्याशी को नोटा के चलते कोई मत नहीं मिलता। इससे यह संदेश दिया जाता है कि मतदाता का अपना मत है, और वह उसे जिसे वह सही समझता है, देने के लिए तैयार है।

उत्तराखंड में नोटा के इस्तेमाल का विस्तार दिखाता है कि मतदाताओं में जागरूकता और समर्थन बढ़ रहा है। यहाँ लोग अपने अधिकार का सशक्त उपयोग कर रहे हैं, जिससे राजनीतिक दलों को भी प्रेरित किया जा रहा है कि वे अच्छे प्रत्याशियों को प्रस्तावित करें और उनकी प्राथमिकताओं को समझें।

हरिद्वार और गढ़वाल सीट पर रुतबा बढ़ा, टिहरी में घटा

पिछले दो लोकसभा चुनावों में नोटा को पड़े मतों का आकलन करें तो इसमें उतार-चढ़ाव भी नजर आया। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां हरिद्वार और गढ़वाल में नोटा का रुतबा बढ़ा, वहीं टिहरी-गढ़वाल सीट पर इसमें कमी आई। इस वर्ष नोटा को हरिद्वार सीट पर वर्ष 2014 से 3,232 मत ज्यादा पड़े, जबकि गढ़वाल सीट पर 3,617 मत अधिक मिले। हालांकि, टिहरी-गढ़वाल सीट पर 4,486 मत कम पड़े।

विधानसभा चुनाव में भी खूब दबाया गया नोटा का बटन

प्रदेश में वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी नोटा का खूब इस्तेमाल हुआ था। इस चुनाव में 46,837 मतदाताओं ने ईवीएम में नोटा का विकल्प चुना, जोकि कुल मतदाताओं का 0.87 प्रतिशत था। इससे पहले वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 1.01 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था।

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