उत्तराखंड में एनकाउंटर : उत्तराखंड में अब तक हुए 109 एनकाउंटर, देहरादून में सबसे ज्यादा बदमाश ढेर, 15 सालो में उत्तराखंड बना अपराधियों की शरण स्थली
उत्तराखंड में एनकाउंटर : एमबीए के छात्र रणवीर को पुलिस ने साथ ले जाकर मार दिया था। पुलिस पर यह कालिख लगने के बाद उत्तराखंड में एनकाउंटर का दौर बंद हो गया। 2009 के बाद अब तक कुछ मौकों पर पुलिस मुठभेड़ जरूर हुई।उत्तराखंड में 14 साल के लंबे अंतराल के बाद 109वां एनकाउंटर किया गया। इससे पहले आखिरी ‘एनकाउंटर’ तीन जुलाई 2009 को हुआ था। हालांकि, यह फर्जी साबित हुआ था।
इस मामले में 18 पुलिसवालों को सजा सुनाई जा चुकी है। तब से पुलिस एनकाउंटर से बचती चली आ रही थी।उत्तराखंड में 14 साल के लंबे अंतराल के बाद 109वां एनकाउंटर किया गया। इससे पहले आखिरी ‘एनकाउंटर’ तीन जुलाई 2009 को हुआ था। हालांकि, यह फर्जी साबित हुआ था। इस मामले में 18 पुलिसवालों को सजा सुनाई जा चुकी है। तब से पुलिस एनकाउंटर से बचती चली आ रही थी।
अभिनव कुमार के डीजीपी बनते ही उम्मीद जगी थी कि पुलिस इस काले अध्याय से बाहर निकलकर फिर एनकाउंटर शुरू कर सकती है। उनके डीजीपी बनने के चार महीने बाद यह सच साबित हो गया। तीन जुलाई 2009 को अमित सिन्हा के एसएसपी रहते दून पुलिस ने लाडपुर में रणवीर का ‘एनकाउंटर’ किया था।यह फर्जी निकला था। एमबीए के छात्र रणवीर को पुलिस ने साथ ले जाकर मार दिया था। पुलिस पर यह कालिख लगने के बाद उत्तराखंड में एनकाउंटर का दौर बंद हो गया। 2009 के बाद अब तक कुछ मौकों पर पुलिस मुठभेड़ जरूर हुई। पर, बदमाशों के पैरों में ही गोली मारी गई।
ताजा मामले से पहले प्रदेश में पुलिस ने 108 एनकाउंटर किए थे। अभी तक एक साल के भीतर 2003 में सबसे अधिक ग्यारह एनकाउंटर हरिद्वार जिले में किए गए। इसके बाद दूसरा नंबर भी हरिद्वार पुलिस का है।
देहरादून जिले में किए गए बाइस एनकाउंटर देहरादून जिले में राज्य स्थापना से लेकर रणवीर हत्याकांड तक कुल 22 एनकाउंटर पुलिस ने किए हैं। राज्य में 2001 में कोश्यारी सरकार के दौरान एनकाउंटर में तेजी आई थी। उस दौरान उत्तराखंड का पहला एनकाउंटर हुआ था। तब से लेकर तीन जुलाई 2009 तक एनकाउंटर का सिलसिला चलता रहा। 2009 में 18 पुलिसकर्मी जेल गए तो यह सिलसिला थम गया था। राज्य में अब फिर से पुलि एनकाउंटर रफ्तार पकड़ सकते हैं।
कई अपराधियों ने ली उत्तराखंड में शरण
इन 15 सालों में देश में कई ऐसे बड़े कांड हुए जिनमें देहरादून, हरिद्वार, ऊधसिंहनगर आदि जिलों के नाम सामने आए। नाम सीधे तौर पर अपराध में शामिल होने में नहीं बल्कि अपराधियों की शरणस्थली बनने में इस्तेमाल हुआ। पंजाब में नाभा जेल तोड़ने के मामले से लेकर 2022 में गायक सिद्धू मूसेवाला के शूटरों तक ने उत्तराखंड में शरण ली। हालांकि, मूसेवाला के शूटर यहां इस घटना को अंजाम देने से पहले रुके थे। ऊधमसिंहनगर में पंजाब के कई बड़े अपराधियों ने शरण ली जिन्हें बाद में एसटीएफ ने पकड़ा। इसी तरह हरिद्वार के छोटे छोटे आश्रमों को भी बदमाशों ने अपराध कर छुपने के लिए आश्रयस्थल बनाया।
उत्तराखंड पुलिस कम से कम गोली नहीं मारेगी
दरअसल, यह बात सिर्फ चर्चाओं में ही नहीं थी। बल्कि समय-समय पर पकड़े गए बदमाशों ने पुलिस के सामने भी कबूल किया कि उन्हें पता था कि अगर पकड़े भी गए तो पुलिस कम से कम एनकाउंटर तो नहीं करेगी। इसी तोहमत को हटाने के लिए पुलिस लंबे समय से इंतजार कर रही थी। आखिरकार 15 साल बाद हरिद्वार के घटनाक्रम से यह अब बीते समय की बात हो गई।
15 सालों से उत्तराखंड में इस तरह का एनकाउंटर नहीं हुआ था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। पुलिस पर्यटकों और कानून का पालन करने वालों के लिए मित्र पुलिस है और पेशेवर अपराधियों के लिए काल पुलिस बनने से भी पीछे नहीं हटेगी। देवभूमि की शांति व्यवस्था में बाधा बनने वालों से पुलिस सख्ती से निपटेगी। उसमें हरिद्वार में हुआ यह एनकाउंटर नजीर बनेगा।