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Bharat News:- देहरादून में एक लाख से ज्‍यादा मतों से जीतकर बीजेपी के सौरभ थपलियाल बने दून के नए मेयर।

देहरादून 

एक लाख से अधिक मतों से जीतकर सौरभ थपलियाल चुने गए देहरादून नगर निगम के महापौर। प्रदेश के सबसे बड़े और 100 वार्ड वाले देहरादून नगर निगम में भाजपा प्रत्याशी सौरभ थपलियाल ने भाजपा के लिए जीत की परंपरा को बरकरार रखा।

वर्ष-2008 से लगातार देहरादून के महापौर की सीट भाजपा के पास रही है। प्रदेश के सभी निगमों में भी यह सबसे बड़ी जीत मानी जा रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के करीबी माने जाते हैं सौरभ थपलियाल।

सौरभ थपलियाल को कुल 241778 मत प्राप्त हुए जबकि दूसरे नम्बर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी विरेन्द्र पोखरियाल 136483 मत ले पाए।

वहीं, 9607 मत पाकर निर्दलीय सरदार पप्पू खान तीसरे नम्बर पर रहे जबकि चुनाव में कड़ी टक्कर का दम्भ भर रही आम आदमी पार्टी महज 2464 मत प्राप्त कर सकी। आम आदमी पार्टी से अधिक मत नोटा को प्राप्त हुए।

देहरादून जहां से कांग्रेस पार्षद जीते वहां से भी महापौर के प्रत्याशी विरेंद्र पोखरियाल को बढ़त मिलती नहीं दिखी। रात दो बजे तक देहरादून नगर निगम के 55 वार्ड पार्षदों के परिणाम घोषित हो चुके हैं।

जिसमें 17 पर कांग्रेसी पार्षद विजय रहे हैं, दूसरी और तीन राउंड की गिनती के बाद देखने में आया कि कहीं से भी कांग्रेस महापौर प्रत्याशी विरेंद्र पोखरियाल बढ़त बनाते नहीं दिखे।

वहीं भाजपा के 33 पार्षद जीतने में कामयाब हुए और महापौर प्रत्याशी सौरभ थपलियाल 49 हजार से अधिक मतों की बढ़त बना चुके थे।

हालांकि अभी तक करीब 35 प्रतिशत वार्डों की तस्वीर भी साफ नहीं हुए, लेकिन शुरूआती घोषित वार्ड पार्षद चुनाव परिणाम से यह तस्वीर उभरकर सामने आई।

निकाय चुनाव में यह भी देखने में आता है कि वार्ड की जनता बतौर पार्षद, उसे पसंद करते हैं तो सालभर उनके बीच दिखे और आमजन के दुख-सुख में साथ खड़ा रहे

भले ही वह किसी भी दल का हो, जबकि महापौर प्रत्याशी का चयन पार्टी स्तर पर पसंद और ना पसंद पर निर्भर होता है। संगठन स्तर पर कितना कड़ा परिश्रम किया, इसका असर महापौर को पड़े मतों के रूप में झलकता है।

सौरभ थपलियाल की शुरूआत भारी बढ़त के पीछे मोदी फैक्टर और धामी सरकार के कार्यों को जोड़कर देखा जा रहा है।

अपनी जनसभाओं में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सौरभ थपलियाल को विजय बनाकर ट्रिपल इंजन की सरकार गठन का जो आह्वान किया वह नजीतों में अभी तक असरदार होता भी दिख रहा है।

दूसरी तरफ विरेंद्र पोखरियाल के लिए जमीनी स्तर पर ना पार्टी कार्यकर्ताओं ने पसीना बहाया और न वार्डों में पार्षद प्रत्याशियों ने विरेंद्र पोखरियाल के लिए वोट मांगे।

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