उत्तराखंड

देहरादून पुलिस ने मानवता का फर्ज निभाया: 17 वर्षों से लापता बेटे को माँ से मिलवाया

 

देहरादून, 01 जुलाई 2024 – देहरादून पुलिस ने एक अद्वितीय और मार्मिक घटना को अंजाम दिया, जिसमें 17 वर्षों से लापता एक बेटे को उसकी माँ से मिलवाया गया। यह घटना केवल एक पुलिस केस से कहीं अधिक, मानवीय संवेदना और कर्तव्यपरायणता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

 

 

 

दिनांक 25 जून 2024 को, एक युवक देहरादून के एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) के कार्यालय में आया और उसने पुलिस को अपनी आपबीती सुनाई। उसने बताया कि जब वह लगभग 9 वर्ष का था, तब एक अज्ञात व्यक्ति ने उसका अपहरण कर लिया था और उसे राजस्थान के किसी अज्ञात स्थान पर ले गया था। वहाँ उसे भेड़-बकरी चराने का काम कराया जाता था। अब, 18-19 वर्षों बाद, वह किसी व्यक्ति की सहायता से देहरादून पहुँचा, लेकिन उसे अपने घर का पता या अपने परिजनों के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी याद नहीं थी। उसे केवल इतना याद था कि उसके पिता की परचून की दुकान थी और उसकी माँ और चार बहनें थीं।

 

 

 

इस सूचना को गम्भीरता से लेते हुए, देहरादून पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की। उन्होंने युवक की रहने और खाने की व्यवस्था की और उसकी जानकारी सोशल मीडिया और पम्पलेट्स के माध्यम से प्रसारित की। जनपद के सभी थानों को इस युवक के परिजनों की तलाश के निर्देश दिए गए। साथ ही, दैनिक राष्ट्रीय समाचार पत्रों में भी इस युवक से संबंधित जानकारी को प्रकाशित किया गया और आम जनता से अपील की गई कि वे इस युवक के परिजनों को ढूंढने में सहयोग करें।

 

 

 

पुलिस के प्रयासों का रंग तब आया, जब बंजारावाला क्षेत्र की एक महिला, आशा शर्मा, एएचटीयू कार्यालय पहुँची। उन्होंने समाचार पत्र में प्रकाशित खबर को पढ़कर बताया कि उनका पुत्र, मोनू, वर्ष 2008 में घर से गायब हो गया था। उन्होंने उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश और अन्य कई स्थानों पर अपने बेटे की तलाश की थी, लेकिन उसे ढूँढने में विफल रही थीं।

 

 

 

पुलिस ने तुरंत युवक को आशा शर्मा से मिलवाया। जब महिला ने अपनी बातों को युवक से साझा किया, तो उसने भावुक होकर अपनी माँ को पहचान लिया और उसे गले लगा लिया। 17 वर्षों बाद अपने खोए हुए बेटे को वापस पाकर आशा शर्मा ने पुलिसकर्मियों को आशीर्वाद दिया और उनके प्रयासों के लिए आभार व्यक्त किया।

 

 

 

देहरादून पुलिस की यह पहल न केवल उनकी कर्तव्यपरायणता और तत्परता को दर्शाती है, बल्कि मानवता की एक महान मिसाल भी पेश करती है। इस घटना ने साबित कर दिया कि पुलिस बल न केवल कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए है, बल्कि समाज में मानवीय संवेदना और कर्तव्यनिष्ठा को बनाए रखने के लिए भी है। आशा शर्मा और मोनू का पुनर्मिलन एक ऐसा क्षण था जिसने न केवल परिवार को पुनः एकजुट किया, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि पुलिस के प्रयास और समर्पण से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

 

 

 

यह घटना समाज के लिए भी एक प्रेरणा है कि किसी भी मुश्किल घड़ी में हार मानने की बजाय धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए। पुलिस की तत्परता और समाज के सहयोग से ही ऐसे कठिन कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया जा सकता है। आशा शर्मा की कहानी हर उस माता-पिता के लिए उम्मीद की किरण है, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है।

 

देहरादून पुलिस की इस अद्वितीय और संवेदनशील कार्यवाही के लिए हर कोई उन्हें सलाम करता है। इस तरह की घटनाएं समाज में पुलिस के प्रति विश्वास और समर्थन को और मजबूत करती हैं।

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