उत्तराखंड

‘आपातकाल’ भारतीय इतिहास का काला अध्याय: डॉ धन सिंह रावत

25 जून 1975 की रात भारतीय इतिहास के पन्नों में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गई। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की, जो 21 महीने तक चला। यह एक ऐसा समय था जब भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को ठप कर दिया गया और नागरिक स्वतंत्रताओं का गला घोंट दिया गया।

 

आपातकाल लगाने का मुख्य कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 12 जून 1975 को दिया गया फैसला था, जिसमें इंदिरा गांधी को रायबरेली संसदीय क्षेत्र से चुनावी अनियमितताओं के कारण दोषी ठहराया गया और उनकी संसदीय सदस्यता रद्द कर दी गई। इस फैसले से देश में राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया और इंदिरा गांधी ने इसे संभालने के लिए आपातकाल की घोषणा की।

 

आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया गया, विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। इस दौरान पुलिस और प्रशासन ने जमकर उत्पीड़न और अत्याचार किए। हजारों लोगों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के जेल में डाल दिया गया।

प्रदेश के कैबिनेट मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने 25 जून 2024 को ‘आपातकाल का काला दिवस’ मनाते हुए उन असंख्य लोकतंत्र के प्रहरियों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की, जिन्होंने कांग्रेस की राष्ट्र विरोधी नीतियों का विरोध करते हुए यातनाएं सही। उन्होंने कहा, “50 वर्ष पहले आज ही के दिन 25 जून 1975 को रात के अंधेरे में श्रीमती इंदिरा गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने संवैधानिक मूल्यों का गला घोंटकर देश में आपातकाल लगा दिया था, जो भारतीय लोकतंत्र के माथे पर कभी न मिटने वाला धब्बा है।”

 

डॉ रावत ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि सत्ता के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जा सकती है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस ने हमेशा संविधान का मजाक बनाया है। यह आपातकाल उस बात का जीवंत प्रमाण है कि किस प्रकार सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस ने संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों की बलि चढ़ा दी।

 

आपातकाल का प्रभाव देश पर बहुत गहरा पड़ा। जहां एक ओर आम नागरिक अपने अधिकारों से वंचित हो गए, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों और समाजिक संगठनों ने इसके खिलाफ जोरदार संघर्ष किया। इस अवधि में भारत ने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से एक कठिन दौर का सामना किया।

 

आपातकाल के अंत के बाद 1977 में हुए आम चुनावों में जनता पार्टी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव ने यह साबित कर दिया कि भारतीय जनता ने लोकतंत्र के खिलाफ किए गए किसी भी प्रयास को नकार दिया और अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हो गई।

 

आपातकाल का दौर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक काला अध्याय है, जो हमें यह सिखाता है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमें हमेशा सजग रहना चाहिए। यह हमारे लिए एक चेतावनी है कि सत्ता के लालच में संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना करना कितना घातक हो सकता है। डॉ धन सिंह रावत और उन जैसे अन्य नेता हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष और त्याग कितना महत्वपूर्ण है। आपातकाल हमें यह भी सिखाता है कि भारतीय जनता कभी भी अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओं से समझौता नहीं करेगी और हर परिस्थिति में लोकतंत्र की जीत सुनिश्चित करेगी।

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