उत्तराखंड में पंचायतों का आंदोलन: कार्यकाल बढ़ाने की मांग को लेकर प्रदेशव्यापी प्रदर्शन
उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत संगठन ने एक बार फिर अपने हक की लड़ाई के लिए मैदान में उतरने का निर्णय लिया है। कोविड-19 महामारी के कारण पिछले दो साल से पंचायत प्रतिनिधि अपने क्षेत्र में कोई काम नहीं करा पाए हैं। इस स्थिति को देखते हुए संगठन ने राज्य सरकार से पंचायतों का कार्यकाल दो साल बढ़ाने की मांग की है। इस मांग को लेकर संगठन ने 24 जून से प्रदेशव्यापी आंदोलन की घोषणा की है।
वर्ष 2019 में हुए पंचायत चुनावों के बाद, पंचायत प्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्र में विकास कार्यों की योजनाएं बनाई थीं। लेकिन, कोविड-19 महामारी ने सारी योजनाओं पर पानी फेर दिया। लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों के चलते पंचायतों के अधिकांश कार्य ठप पड़ गए। विकास कार्यों में रुकावट के कारण ग्रामीण इलाकों में लोग काफी परेशान हुए और इसके परिणामस्वरूप पंचायत प्रतिनिधियों को भी काफी आलोचना का सामना करना पड़ा।
उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन के संयोजक जगत मर्तोलिया ने बताया कि इस आंदोलन में राज्य के 70 हजार निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल होंगे। इनमें वार्ड सदस्य, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के सदस्य शामिल हैं। आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य राज्य सरकार पर दबाव बनाना है ताकि वह पंचायतों का कार्यकाल दो साल बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
संगठन की मांग है कि राज्य में सभी जिलों में एक साथ पंचायत चुनाव कराए जाएं। यह मांग “एक राज्य, एक पंचायत चुनाव” के नारे के साथ उठाई गई है। संगठन का कहना है कि यदि सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। आंदोलन के तहत 89 ब्लॉक और 12 जिला मुख्यालयों में धरना प्रदर्शन किया जाएगा और मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री को मांग पत्र भेजे जाएंगे।
संगठन की प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:
1. पंचायतों का कार्यकाल दो साल बढ़ाया जाए।
2. हरिद्वार जिले के साथ-साथ सभी जिलों में एक साथ चुनाव कराए जाएं।
3. पंचायत प्रतिनिधियों को विकास कार्यों के लिए अतिरिक्त समय और संसाधन दिए जाएं।
संगठन के संयोजक के मुताबिक, वर्ष 2001 में राज्य सरकार ने एक साल तीन माह का कार्यकाल बढ़ाया था। आज भी राज्य के ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के कार्यालयों में लगे साइन बोर्ड इसके प्रमाण हैं। इसके अलावा, हरिद्वार जिले में राज्य सरकार ने वर्ष 2020 के बाद दो बार कार्यकाल बढ़ाया है। इन उदाहरणों को देखते हुए, संगठन का मानना है कि उनकी मांगें पूरी करना असंभव नहीं है।
देश के विभिन्न राज्यों ने अध्यादेश लाकर पंचायत का कार्यकाल बढ़ाया है। उत्तराखंड में भी यह संभव है। पिछले दिनों चुनाव आचार संहिता के कारण आंदोलन को स्थगित कर दिया गया था, लेकिन अब फिर से आंदोलन को तेज करने की रणनीति बना ली गई है।
इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए संगठन की ऑनलाइन बैठक आयोजित की गई। बैठक में जिला पंचायत अध्यक्ष संगठन की प्रदेश अध्यक्ष सोना सजवान, क्षेत्र प्रमुख संगठन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दर्शन सिंह दानू, जिला पंचायत सदस्य संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्ट और ग्राम प्रधान संगठन के प्रदेश अध्यक्ष भास्कर शामिल थे।
उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन का यह आंदोलन राज्य की पंचायत व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। पंचायत प्रतिनिधियों का मानना है कि यदि उन्हें अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को पूरा करने के लिए और समय दिया जाए, तो वे ग्रामीण इलाकों में बेहतर सुविधाएं और संसाधन मुहैया करा सकते हैं।
यह आंदोलन केवल पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकारों की बात नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण विकास और पंचायत प्रणाली की मजबूती के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। अब देखना यह है कि राज्य सरकार इस आंदोलन पर क्या प्रतिक्रिया देती है और पंचायत प्रतिनिधियों की मांगों को किस हद तक पूरा करती है।